चला नही जाता अब, चाल में कुछ बदलाव सा है,
जिंदगी की भाग दौड़ में, लग रहा अब ठराव सा है,
मुझसे किसीने कहा था तब, ऐसी कुछ बातों का सच,
पूर्वकथित मेरे कर्मो का हिसाब, उम्र का कठोर पड़ाव सा है।
छोड़ आया था में भी बूढ़े पिता को , अंजान दुनिया में तब,
दिशाहीन खड़ा हूं में अब , तेरा यह बरताव मेरेही नीच स्वभाव सा हैं।
साईश १३.१०.२०२१
