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।। झूठा गुरूर ।।
गुरूर किसका है इतना तुम्हे, बसर है दोनोकाही यहा,
हम दोनोही है एक जैसे, तुम भी मिट्टी मैं भी मिट्टी ,
कफन में कोई जेब नही, नाही कब्र में कोई खजाना ,
कर्मो का है सिलसिला कुछ ऐसा, खारिज़ यहा हैं हर सिफरीज की चिट्ठी।

साईश १४.१०.२०२१
।।उम्र का हिसाब।।
चला नही जाता अब, चाल में कुछ बदलाव सा है,
जिंदगी की भाग दौड़ में, लग रहा अब ठराव सा है,
मुझसे किसीने कहा था तब, ऐसी कुछ बातों का सच,
पूर्वकथित मेरे कर्मो का हिसाब, उम्र का कठोर पड़ाव सा है।
छोड़ आया था में भी बूढ़े पिता को , अंजान दुनिया में तब,
दिशाहीन खड़ा हूं में अब , तेरा यह बरताव मेरेही नीच स्वभाव सा हैं।
साईश १३.१०.२०२१

हिसाब रिश्तों का
दोस्त बनकर ओढ़ना हमें नकाब नही आता,
झूट की हिफाजत हो ऐसा हमें जवाब नहीं आता,
दोस्ती में अपने रिश्तों का सौदा करके
लेना हमें उसका हिसाब नही आता ।
साईश १०.१०.२०२१
समझदारी
खाली बर्तनों में भी आवाज कई होते है,
पड़े लिखे अनपढ़ लोगों के भी अंदाज कई होते है,
खाली दिमाग के ताबूत को अपने समझ से खोलो,
समझदार लोगों की खामोशी में भी अल्फाज कई होते है।
साईश ४/१०/२०२१
भ्रष्टाचार अब हुआ शिष्टाचार
दुनिया में अब बईमान हर किरदार होगया है
कानून तो बस अमीरों का हथियार होगया है
जब मक्कारो की ही चलती यह सरकार है
अब बासी मेरे लिए हर अखबार होगया है।
साईश ३०/०९/२०२१
केहेत भगत सिंग
आदर्शवादी विचार वो मेरे, जैसे मीठे सपने थे,
त्याग शरीर अपना मैंने, जिनको बनाए अपने थे
बम ना फोड़ा था उस दिन, जब नारे हमने लगाए थे,
भैरे भी जो सुन पड़े , निडर हम गुर्राए थे,
लहू ना मुझको था बहाना, ना खून की मांग दिखाई थी,
जालीमो को जो समझ आए, बुलंद आवाज वो सुनाई थी
रूका हूं यहाँ थोड़ा और, कब मुझे तुम सुनपाऊगे,
छोड़ क्रोध सत्ता की भक्ति, कब विचार मेरे अपनाओगे
हिम्मत अपनी बांध कर तुम, कब अपना शीश उठाओगे
खुशी से अपने दिल में तुम, कब मेरे विचार बसाओगे
मार ना पाए थे मुझको , बस शरीर मैंने था छोड़ा,
छू न पाए विचार मेरे, बस हाड़ मास को था तोड़ा
देख रहा अब दीवारों पर, तस्वीर मेरी लटकाई है,
बेच दिया पहले ईमान था, अब क्या अकल भी बेच खाई है?
मरकर भी जिंदा मैं था, पर अब तुम मुझे मार रहे
शरीर छोड़ा मैंने तब था, अब विचार भी मेरे भूला रहे
आजाद हिंद का सपना वो, कब मुझे तुम दिखलाओगे
अपनाओ भूले आदर्श विचार, तभी अमर मुझे कहलाओगे।
शीश झुकाकर नमन मेरा आदर्शवादी शहीद भगत सिंग को।
साईश २८.०९.२०२१
बुलंद आवाज
जिंदगी के अल्फासो में, बेचैनी मन में छाई थी
आयिनो के बिखरे टुकड़ों में, बिखरी अपनी परछाई थी
लोगो में था खोया, चुभती हरपाल वो तन्हाई थी
अपनो में रहकर भी, अलग खुदडको कहलाई थी
अपना समझूं किसे, अविश्वास की गहराई थी
खंजर खूपा उसिने, जो केहेट मेरी परछाई थी
आसमान न झुका था, आसू बदलो ने जब बहाए थे
समंदर के ऊंचे लहरों में ,तैरके हम जब आए थे
झुकाए जो वो शीश मेरा, पैदा हुई ना वो हस्ती है
डुबाड़े अशांत सागर में, कमजोर इतनी ना मेरी कश्ती है
यातनाओं के भवर में तुम कब तक मुझको झोकोगे
धीट हूं में बलवान भी हूं , तुम कब तक मुझको रोकोगे
चिंगारी को आग बनाए , खड़ा मुझे हरपाल देखोगे।
साईश २७.०९.२०२१
मौत एक हसीना
जिंदगी तो एक छलावा है ,और मौत एक खूबसूरत हसीना है
शरीर तो मेरे बस मैले कपड़े है, और मन मेरा एक निर्मल कविता है
खूबसूरती तो दर्पण मन का पावन है, पर धोया जब भी मुख मैंने पाया हमेशा ही रावण है
मौत तो मुकम्मल नींद है , जिस में बस मधुर शांति है
परंतु जीवन में तो गर्दिश भावनाओ की फैली अशांति है
अलग खुद को देख पाओ तो मौत भी एक हसीन जिंदगी है
जो लहरों में तुम बहते जाओ तो पल भर की जिंदगी भी दर्दनाक मौत है
इसलिए साहब कहता हूं छलावा जिंदगी का तो बस एक मुखौटा है,
और ख्वाबों की दुनिया में मौत एक खूबसूरत हसीना है
साईश २४.०९.२०२१
देश की बेटी
दुनियां के ताने अपने झोली में, जो भर भर वो लेती थी
भूल गए सब लोग यहां, वो इसी देश की बेटी थी
पट्टी बांध कानून था अंधा, यहा लोग भी अंधे होगए
बेटी बचाओ का नारा लेकर, अपनी बेटी को ही खोगए
चीर उसका हरण किया था, मन भी उसका तोड़ गए
देवी समान बेटी को वो, दर्द से तड़पता छोड़ गए
चीख रही थी वो!!!, क्या सुना नहीं तुमने कुछ था
जिस देश में रहते थे उसके, माटी को ही मैला किया
मौत भी शर्मा जाए ऐसी, घिनौनी वो हरकत थी
मां भी कहे रही वो आज, तुमसे अच्छी वो बेटी थी
खुदके अंश से जन्म दिया, तुमको वो भी एक बेटी है
नाश तुम्हारा करने आज, देख मुरख मां शेरावाली बैठी है
जाग जाओ तभी सवेरा, कहना बस मुझको इतना है
रात काली अब छा गई, तुमको और सोना कितना है।
साईश २६.०९.२०२१