जिंदगी के अल्फासो में, बेचैनी मन में छाई थी
आयिनो के बिखरे टुकड़ों में, बिखरी अपनी परछाई थी
लोगो में था खोया, चुभती हरपाल वो तन्हाई थी
अपनो में रहकर भी, अलग खुदडको कहलाई थी
अपना समझूं किसे, अविश्वास की गहराई थी
खंजर खूपा उसिने, जो केहेट मेरी परछाई थी
आसमान न झुका था, आसू बदलो ने जब बहाए थे
समंदर के ऊंचे लहरों में ,तैरके हम जब आए थे
झुकाए जो वो शीश मेरा, पैदा हुई ना वो हस्ती है
डुबाड़े अशांत सागर में, कमजोर इतनी ना मेरी कश्ती है
यातनाओं के भवर में तुम कब तक मुझको झोकोगे
धीट हूं में बलवान भी हूं , तुम कब तक मुझको रोकोगे
चिंगारी को आग बनाए , खड़ा मुझे हरपाल देखोगे।
साईश २७.०९.२०२१
बहुत खुबी से आपने अपने अन्दर की फीलिंग्स को दर्शाया है.Too good very nicely worded.
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🙏😊
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You have penned down your thoughts very beautifully👏… Please keep writing and inspiring the people around you…
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सुंदर 👌👌
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बहुत सुन्दर मन का ये आवाज लाजवाब हैं 👍🌹🙏
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🙏☺️
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🌷🙏🌷
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