केहेत भगत सिंग

आदर्शवादी विचार वो मेरे, जैसे मीठे सपने थे,
त्याग शरीर अपना मैंने, जिनको बनाए अपने थे

बम ना फोड़ा था उस दिन, जब नारे हमने लगाए थे,
भैरे भी जो सुन पड़े , निडर हम गुर्राए थे,

लहू ना मुझको था बहाना, ना खून की मांग दिखाई थी,
जालीमो को जो समझ आए,  बुलंद आवाज वो सुनाई थी

रूका हूं यहाँ थोड़ा और, कब मुझे तुम सुनपाऊगे,
छोड़ क्रोध सत्ता की भक्ति, कब विचार मेरे अपनाओगे

हिम्मत अपनी बांध कर तुम, कब अपना शीश उठाओगे
खुशी से अपने दिल में तुम, कब मेरे विचार बसाओगे

मार ना पाए थे मुझको , बस शरीर  मैंने था छोड़ा,
छू न पाए विचार मेरे, बस हाड़ मास को था तोड़ा

देख रहा अब दीवारों पर, तस्वीर मेरी लटकाई है,
बेच दिया पहले ईमान था, अब क्या अकल भी बेच खाई है?

मरकर भी जिंदा मैं था, पर अब तुम मुझे मार रहे
शरीर छोड़ा मैंने तब था, अब विचार भी मेरे भूला रहे

आजाद हिंद का सपना वो, कब मुझे तुम दिखलाओगे
अपनाओ भूले आदर्श विचार, तभी अमर मुझे कहलाओगे।

शीश झुकाकर नमन मेरा आदर्शवादी शहीद भगत सिंग को।

साईश २८.०९.२०२१

6 Comments

  1. Sonal's avatar Sonal says:

    Very well written Sha👍….very proud of you👏👏….mind-blowing🤗

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  2. जयंत वि. रेगे's avatar जयंत वि. रेगे says:

    Great thoughts. Great poem 🙏🙏

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  3. borkarsnehal's avatar borkarsnehal says:

    Khup sundar kavita aahe saish👌

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  4. खूबसूरत लयिनें 🙏🌹👍

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    1. saish rege's avatar saish rege says:

      धन्यवाद ma’am🙏

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      1. शुक्रिया 🌷🙏🌷

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